पीएम की गंगा बैठक होगी कानपुर में
यह सहज ही समझा जा सकता है कि गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कानपुर की प्रस्तावित यात्र को लेकर राज्य सरकार और अफसरों में कितनी अफरा तफरी होगी।
जिस तरह आनन फानन में सबकुछ दुरुस्त दिखाने के लिए काम किए जा रहे हैं वह इसका साक्ष्य है। सच्चाई तो यह है
शुरूआत में अफसरों की ओर से प्रधानमंत्री की कानपुर यात्र को लेकर अफसरों में उत्साह नहीं दिखाया गया था। टालने की कोशिश हुई ऐसा तो नहीं कहा जा सकता है लेकिन संकोच बहुत ज्यादा था। लेकिन जनजागरण के जरिए स्वच्छता अभियान को सिरे चढ़ा चुके प्रधानमंत्री यह तय कर चुके थे कि गंगा की सफाई भी तभी परवान चढ़ेगी जब वह खुद इसके लिए उतरेंगे। दरअसल कानपुर का चुनाव ही इसलिए किया गया क्योंकि गंगा यहीं सबसे ज्यादा प्रदूषित होती है। माना जा सकता है यह शुरूआत है। प्रधानमंत्री अब खुद गंगा की निगरानी भी रखेंगे और जरूरत हुई तो आन स्पाट बैठकें भी करते रहेंगे।
दरअसल प्रधानमंत्री के इस निर्णय के पीछे पृष्ठभूमि है। साढ़े पांच साल पहले मोदी जब वाराणसी से नामांकन करने गए थे तो कहा था कि 'मुङो गंगा माता ने बुलाया है।' दरअसल यह संकल्प था कि वह गंगा की पीड़ा अब दूर करेंगे। 2014 में सरकार बनते ही उन्होंने नमामि गंगे के नाम से योजना शुरू कर तत्काल बड़ी राशि भी आवंटित कर दी थी। पहले उमा भारती को इसकी जिम्मेदारी थी और जब लगा कि कार्य अपेक्षा अनुरूप सिरे नहीं चढ़ रहा है तो नितिन गडकरी जैसे अनुभवी मंत्री को लगाया। पिछले कुछ वर्षो में जाहिर तौर पर काम बढ़ा है लेकिन तय समय सीमा में काम पूरा करने के आदी प्रधानमंत्री इससे संतुष्ट नहीं हैं। वह इसी कार्यकाल में गंगा को किया गया वादा पूरा करना चाहते हैं जहां गंगा अपने गौरव में दिखे। यही कारण है कि प्रधानमंत्री ने कानपुर का चुनाव किया जहां गंगा का पानी आचमन तो दूर नहाने लायक भी नहीं माना जाता है। टैनरी को हटाने और दूसरी जगह स्थानांतरित करने का काम बहुत गति नहीं पकड़ पाया, इस काम में लगाए गए अफसरों का उत्साह कभी भी परिलक्षित नहीं हुआ। सूत्रों की मानी जाए तो पीएमओ को अहसास होने लगा था कि कहीं न कहीं सुस्ती है और वह शिथिलता तभी जाएगी जब प्रधानमंत्री खुद मैदान में उतरेंगे। बताते हैं कि इस क्रम में प्रदूषित करने वाली फैक्टियों को पूरी तरह नियम कायदों की हद में लाने और जहां तक संभव हो उसे गंगा से दूर स्थापित करने की भी कोशिश होगी। प्रदूषण नियंत्रण के लिए सभी संयंत्र क्रियान्वित किया जाएगा। लेकिन गंगा के किनारे बसे लोगों को विस्थापित नहीं किया जाएगा। उन्हें केवल जागरुक बनाकर यह सुनिश्चित किया जाएगा कि गंगा स्वच्छ रहे। दरअसल पूरी कवायद है कि कानपुर और उन्नाव से आगे भी गंगा का पानी उतना निर्मल रहे जितना उपर से आता है। जिस तरह प्रधानमंत्री ने कानपुर में गंगा के बीच ही बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के मुख्यमंत्रियों के साथ भी बैठक करने का निर्णय लिया है केवल कानपुर के सिर पर ठीकरा फोड़कर बचा नहीं जा सकता है। अभी सरकार के छह महीने पूरे हुए हैं। प्रधानमंत्री ने शुरूआत में ही आन स्पाट बैठक करने का निर्णय लेकर स्पष्ट कर दिया है कि अब देरी उन्हें बर्दाश्त नहीं।