भीषण विरोध के बावजूद बिल हुआ पास
राज्यसभा में आठ घंटे से अधिक चर्चा के बाद पारित, अब सिर्फ राष्ट्रपति की मुहर बाकी
संशोधित विधेयक में पड़ोसी देशों अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के अल्पसंख्यक शरणार्थियों (हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई) को भारतीय नागरिकता लेने का समय 11 साल से घटाकर छह साल किया गया है।नागरिकता संशोधन विधेयक संसद में पारित होने के साथ ही करोड़ों वंचित और पीड़ित लोगों के सपने आज साकार हुए हैं।
विशेष संवाददाता नागरिकता संशोधन विधेयक बुधवार को संसद और सड़क पर भीषण विरोध के बावजूद पास हो गया। आठ घंटे से अधिक चली चर्चाके बाद रात 8:45 बजे राज्यसभा ने बिल पर मुहर लगाई।बिल के पक्ष में 125 जबकि विरोध में 99 मत पड़े। लोकसभा सोमवार को ही इसे पास कर चुकी है। राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद यह कानून लागू हो जाएगा। कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि बिल को उच्चतम न्यायालय में चुनौती देने की बात कही है। शिवसेना ने वॉकआउट किया: लोकसभा में विधेयक पर सरकार का समर्थन करने वाली शिवसेना राज्यसभा में मतदान से पहले वॉकआउट कर गई। वहीं, जदयू ने अटकलों को विराम देते हुए बिल का समर्थन किया। दोनों दलों ने लोकसभा में समर्थन देने के बाद बिल के प्रावधानों पर आपत्ति जताई थी। विधेयक ऐतिहासिक: इससे पहले गृहमंत्री अमित शाह ने उच्च सदन में संशोधन विधेयक पेश करते हुए इसे ऐतिहासिक बताया। उन्होंने कहा कि भारत के मुसलमान भारतीय नागरिक थे, हैं और बने रहेंगे। शाह ने कहा कि यह बिल ऐतिहासिक भूल को सुधारने के लिए लाया गया है। विपक्ष को जवाब : विपक्ष के सवालों का एक-एक कर जवाब देते हुए शाह ने कहा कि उन्होंने पूर्वोत्तर के लोगों के हितों की रक्षा का भरोसा दिया। साथ ही कहा कि यह विधेयक नागरिकता देने वाला बिल है नागरिकता लेने वाला नहीं। इसलिए देश के मुसलमानों को डरने की जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा कि मुसलमानों को विपक्ष के भ्रामक प्रचार से बचना चाहिए। बिल पर चर्चा में विपक्षी सदस्यों ने विधेयक को संविधान के अनुच्छेद 14 के खिलाफ बताया था। कोर्ट में टिकेगा कानून शिवसेना के बिना आंकड़ा बढ़ाया