नहीं रहे पद्मश्री डॉ. यशी ढोडेन

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दलाईलामा के निजी चिकित्सक रहे और कैंसर का उपचार करने में माहिर पद्मश्री डॉ. यशी ढोडेन का मंगलवार को मैक्लोडगंज में निधन हो गया। 92 वर्षीय डॉ. यशी कुछ समय से अस्वस्थ थे। उनका अंतिम संस्कार शुक्रवार को मैक्लोडगंज में किया जाएगा।


डॉ. यशी के क्लीनिक में देश-विदेश से भीड़ जुटती थी और उन्होंने कई रोगियों को नया जीवन दिया था। वह रोगियों का इलाज तिब्बती चिकित्सा पद्धति से करते थे। उनका जन्म 15 मई, 1927 को तिब्बत के ल्हासा में हुआ था। 12 वर्ष की आयु में ही उन्होंने तिब्बती मेडिसन एंड एस्ट्रोलॉजिकल साइंस ल्हासा स्थित तिब्बती चिकित्सा पद्धति एवं खगोल संस्थान में प्रवेश लिया था। महज 20 वर्ष की आयु में ही उन्होंने पढ़ाई पूरी कर चिकित्सा के क्षेत्र में कदम रखा था। तिब्बत में चिकित्सा सेवाएं देने के बाद वह वर्ष 1959 को भारत आए थे और 1980 में मैक्लोडगंज में तिब्बतियन हर्बल क्लीनिक शुरू किया। वह रोगी के पेशाब और नब्ज का अध्ययन कर तिब्बती आयुर्वेदिक दवाएं देते थे। डॉ. यशी ने 1961 से 1980 तक दलाईलामा के निजी चिकित्सक के रूप में भी सेवाएं दी थीं। दलाईलामा के साथ रहते हुए डॉ. यशी ने तिब्बती चिकित्सा पद्धति में शोध के अलावा कैंसर जैसे असाध्य रोग के उपचार में भी कुशलता हासिल की थी। उनके शोधपत्रों को दुनिया की सबसे बेहतर मॉडर्न मेडिकल साइंस अमेरिका के विज्ञानियों ने भी मान्यता दी थी। डॉ. यशी को 20 मार्च, 2018 को राष्ट्रपति रामनाथ को¨वद ने पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया था। स्वास्थ्य ठीक न रहने पर 1 अप्रैल, 2019 को उन्होंने क्लीनिक बंद कर दिया था। उनका पार्थिव शरीर मैक्लोडगंज स्थित अशोका निवास में रखा है।