भाजपा और शिवसेना का साथ अब मुश्किल है
विधानसभा चुनाव साथ लड़ने के बाद 50-50 की मांग पर अड़ जाने के कारण भाजपा के साथ शिवसेना का गठबंधन टूट चुका है।
महाराष्ट्र में कांग्रेस-राकांपा के भरोसे बैठी शिवसेना अब तक दोनों दलों से समर्थन का पत्र नहीं ले पाई है। इस बीच हालात ऐसे बन गए हैं कि अगर शिवसेना भाजपा की ओर आना भी चाहे, तो आसान नहीं होगा।
भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व के साथ शिवसेना के रिश्ते काफी तल्ख हो चुके हैं। दरअसल, दोनों दलों के एक बार फिर साथ आने के कयास तब लगने शुरू हुए, जब मीडिया में ऐसी खबरें आईं कि 50-50 पर सहमति बने तो फिर दोनों का गठबंधन हो सकता है। सावरकर को भारत रत्न देने के मसले पर दोनों दलों की एक राय ने भी इस चर्चा को बल दिया है।
विधानसभा चुनाव साथ लड़ने के बाद 50-50 की मांग पर अड़ जाने के कारण भाजपा के साथ शिवसेना का गठबंधन टूट चुका है। राज्य ही नहीं, केंद्र सरकार से भी उसने अपने एकमात्र मंत्री डॉ. अरविंद सावंत को इस्तीफा दिलवा दिया है। अब हाल यह है कि जिनके भरोसे उसने यह जोखिम लिया, उन कांग्रेस-राकांपा की तरफ से अब तक उसे निराशा ही हाथ लगी है। कांग्रेस-राकांपा का समर्थन पत्र नहीं जुटा पाने के कारण 11 नवंबर को राजभवन जाकर भी शिवसेना प्रतिनिधिमंडल को खाली हाथ लौटना पड़ा था। अब भी कांग्रेस-राकांपा कभी न्यूनतम साझा कार्यक्रम, तो कभी अपने आलाकमान की अंतिम मंजूरी के बहाने शिवसेना को बहलाती आ रही हैं।