स्वच्छता अभियान बना जनांदोलन


स्वच्छ भारत अभियान। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का मानना था कि साफ-सफाई, ईश्वर की भक्ति केबराबर है और इसीलिए उन्होंने लोगों को स्वच्छता संबंधी शिक्षा दी और देश को एक उत्कृष्ट संदेश दिया। महात्मा गांधी के स्वच्छ भारत के सपने को पूरा करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दो अक्टूबर 2014 को स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत की। इस अभियान से स्थानीय प्रशासन के साथ-साथ आम लोगों को भी जोड़ा गया और उन्हें जागरूक किया गया। यही कारण है कि आज देश के हर गांव में शौचालय का निर्माण हुआ।


स्वच्छता को लेकर जनता भी पहले से ज्यादा जागरूक हुई है। जिस जन आंदोलन का स्वरूप लेकर देश ने बहुत कम समय में खुले में शौच से मुक्त होने का मुकाम हासिल किया, वह सदियों से एक अभिशाप के रूप में हमारे देश को शर्मसार करता रहा। पांच वर्ष पहले तक भले ही यह सबकुछ असंभव सा लगता हो, लेकिन कहते हैं कि जिसने ठान लिया, जीत उसी की है और इसी जीत को हमने हासिल किया। देश के प्रत्येक व्यक्ति ने, सभी तबकों ने देश को पांच वर्ष से कम समय में ही खुले में शौच से मुक्त बनाने में अपना योगदान दिया है। मेरे विचार से इसकी दुनिया में कोई और मिसाल नहीं है।


स्वच्छता की कमी के कारण सबसे अधिक हानि छोटे बच्चों को होती है। यह इस तथ्य से सिद्ध होता है कि भारत में डायरिया और कुपोषण बच्चों की अकाल मृत्य के दो प्रमुख कारण हैं। विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में एक वर्ष में गंदगी के कारण लगभग 17 लाख मौतें होती हैं, जिसमें 90 प्रतिशत बच्चे होते हैं। लोगों के स्वास्थ्य में सुधार के लिए व्यक्तिगत और सामुदायिक, दोनों स्तरों पर स्वच्छता अनिवार्य है।


आजादी के सात दशकों के बाद भी भारत अपेक्षित स्वच्छता स्तर को प्राप्त करने में विफल रहा। उत्तर प्रदेश में यही दशा थी। पूर्वी उत्तर प्रदेश तो गंदगी और बीमारियों की चपेट में रहने के लिए मानो अभिशप्त सा था। पिछले कई वर्षो से पूर्वी उत्तर प्रदेश के कई जिलों में हर वर्ष दिमागी बुखार से छोटे बच्चों की मौत बड़ी गंभीर एवं दुखद समस्या रही है। इसका मूलभूत कारण गंदगी ही थी। इससे निपटने का सबसे अच्छा तरीका स्वच्छता के माध्यम को अपनाना था। स्वच्छ व्यवहार और अपने आस-पास की स्वच्छता के जरिये इसे रोका जा सकता था और ऐसा ही किया गया।